रविवार, 15 जनवरी 2023

जीवन में असंभव कुछ भी नही है | यह बात जान ली तो जीवन में कभी समस्याएं नहीं आएंगी

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जीवन में असंभव कुछ भी नही है | गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी | Gautam Buddha's Story


गौतम बुद्ध एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था।


जन्म की तारीख और समय: 564 ईसा-पूर्व, लुम्बिनी, नेपाल

मृत्यु की जगह और तारीख: कुशीनगर

बच्चे: राहुला

पत्नी: राजकुमारी यशोधरा

बहन: नन्दा

माता-पिता: शुद्धोदन, रानी महा माया


अंगुलिमाल बौद्ध कालीन एक दुर्दांत डाकू था जो राजा प्रसेनजित के राज्य श्रावस्ती में निरापद जंगलों में राहगीरों को मार देता था और उनकी उंगलियों की माला बनाकर पहनता था। इसीलिए उसका नाम अंगुलिमाल पड़ गया था।

जीवन में असंभव कुछ भी नही है | यह बात जान ली तो जीवन में कभी समस्याएं नहीं आएंगी

जीवन में असंभव कुछ भी नही है और जब जागो तब सवेरा होता है। अगर आपको ये लगता है की मैने बहुत से बुरे काम किए हुए हैं और अब इन गलत कामों को सुधारने के लिए कोई भी विकल्प नहीं है, तो आपको गौतम बुद्ध के जीवन की ये कहानी एक बार अवश्य सुन्नी चाहिए।


Gautam Buddha's Story 


यह बात जान ली तो जीवन में कभी समस्याएं नहीं आएंगी |

 

जीवन में असंभव कुछ भी नहीं है और जब जागो तब सवेरा  होता है अगर आपको यह लगता है की मैंने बहुत से बुरे   कम किए हुए हैं और अब इन गलत कामों को सुधारने के  लिए कोई भी विकल्प नहीं है तो आपको गौतम बुद्ध के   जीवन की यह कहानी एक बार अवश्य सनी चाहिए एक दिन  बुध श्रावस्ती के ही एक गांव में bhikshatan के  लिए पहुंचने हैं जब बुद्ध गांव में प्रवेश करते हैं  तो देखते हैं की पूरे गांव में सन्नाटा छाया हुआ है   

दूर-दूर तक कोई व्यक्ति नजर नहीं ए रहा था बुध उसे  गांव के पहले द्वार पर जाते हैं और कहते हैं भिक्षम   देही परंतु भीतर से बाहर कोई नहीं आता बुध दूसरे  द्वार पर जाते हैं परंतु कोई दरवाजा नहीं खोलता  

 

बुद्धि तीसरे द्वार पर जाते हैं परंतु उसे द्वार  से भी कोई व्यक्ति बाहर नहीं आता फिर अचानक से एक   दरवाजा खुलता है जिसमें से एक व्यक्ति बाहर निकलता  है वो जल्दी से बुध का हाथ पकड़ता और उन्हें अपने   में ले जाता है और कहता है क्षमा करें बुध  परंतु इस समय आप बाहर नहीं जा सकते उंगली   मल को श्रावस्ती की सीमा पर देखा गया है  सभी गांव वाले दर के मारे अपने अपने घरों   की खिड़कियां दरवाजे बंद करके बैठे हुए हैं  बुद्ध उसे व्यक्ति से पूछते हैं कौन है ये   उंगली मल और उससे इतना भाई क्यों है वह व्यक्ति  कहता है उंगली मल एक रक्षा है 

उसे जो भी मनुष्य मिलता है बच्चा वृद्ध स्त्री या पुरुष यहां तक  की सन्यासी भी वो किसी को भी नहीं छोड़ता महाराज   प्रसन्न जीत के सैनिक भी उससे डरते हैं बुद्ध  उसे व्यक्ति से पूछते हैं क्या वो ये सब धन के   लालच में करता है वो व्यक्ति कहता है नहीं धन का  उसे कोई लालच नहीं है वो जब भी किसी मनुष्य पर   वॉर करता है तो उसकी उंगली काट कर अपने गले की  माला बनाता है इसलिए उसका नाम उंगली मल पद गया पुरी हो जाएंगी तो उसकी विनाशक शक्तियां और भी  ज्यादा बढ़ जाएंगी बुध कहते हैं आभार आपका जो   आपने मुझे उसके बारे में बताया फिर वो व्यक्ति बुध  से कहता है की कृपा कर आप बाहर ना जाइए क्योंकि वो आप पर भी वॉर कर सकता है

 बुद्ध कहते हैं भाई से  अपनी रह छोड़ दो ऐसा मैंने कभी नहीं किया मुझे   भिक्षा मांगता देख जन-जन के हृदय में उंगली मल  का भाई कम होगा फिर वो व्यक्ति कहता है नहीं बुध   आप मत जाइए वो बहुत ही ज्यादा खतरनाक है बुद्ध कहते  हैं वो खतरनाक नहीं बल्कि दुखी है और मुझे उसके पास जाना होगा क्योंकि उसे मेरी आवश्यकता है इतना कहकर  बुद्ध उसे व्यक्ति के पास से चले जाते हैं कुछ दूर  चलने के बाद बुद्ध वैन में प्रवेश करते हैं वैन  में चारों ओर एक सन्नाटा छाया होता है दूर-दूर तक  ना तो कोई मनुष्य और ना ही कोई पशु पक्षी दिख रहा  होता है parntu बुध अपने मार्ग में आगे बढ़ते रहते अचानक बुध के सामने उंगली मल आकर खड़ा है 

उसका रूप  इतना डरावना होता है की कोई भी व्यक्ति उसे देखकर   ही भयभीत हो जाएं उसके गले में उंगलियों की माला  होती है चेहरा और हाथ रक्त से साने होते हैं और   शरीर बलशाली होता है उसका रूप इतना भयानक होता है  की किसी भी साधारण व्यक्ति के प्राण तो उसे देखते   ही निकल जाए परंतु बुध पर उंगली मल के इस डरावने  रूप का कोई भी असर नहीं होता बुध कुछ क्षण तक एक   शांत मुस्कुराहट के साथ उंगली मल की तरफ देखते  हैं और फिर उसकी बगल से निकलकर अपने मार्ग में   आगे बढ़ जाते हैं बुद्ध को ऐसा करते देख उंगली मल  को यह समझ नहीं आता की उसके साथ ये हो क्या रहा है  

वह मैन ही मैन सोचता है की मुझे देखकर लोग यहां तो  भाग जाते हैं या मुझे देखकर ही मार जाते हैं या फिर   मुझसे अपने प्राणों की भीख मांगने लगते हैं मैंने कई  सन्यासियों को भी मारा है परंतु मैंने आज तक कोई ऐसा   कभी नहीं देखा जो मुझे नजरअंदाज करके अपने मार्ग  में आगे बढ़ जाए या तो इसने मुझमें पर ध्यान नहीं   दिया होगा या फिर हो सकता है की यह देखी ना सकता हो  परंतु मुझे इससे क्या मुझे तो अपनी उंगलियों की माला   पुरी करनी है कुंडली मांग बुध को आवाज़ लगता है इस  साधु रुक फिर भी बुध उंगली मल को नजर अंदाज़ करते हैं और अपने मार्ग में आगे बढ़ते रहते हैं 

उंगली मल  और ज्यादा क्रोध में भरकर बुद्ध को आवाज़ लगता है ये   साधु रूप फिर भी बुध उंगली मल को फिर से नजर अंदाज़  करते हैं और अपने मार्ग में आगे बढ़ते हैं उंगली मल   तीसरी बार बहुत ही ज्यादा क्रोध में भरकर आवाज़ लगता  है इस sadhuru फिर बुद्ध रुकते हैं उंगली मल बुध के   पास जाता है और कहता है मेरे आदेश देने के बाद भी  तू रुका क्यों नहीं बुध कहते हैं मैं तो बहुत पहले   ही रुक चुका हूं तुम ही चलते जा रहे हो उंगली मल  यह समझ ही नहीं पता की बुद्ध क्या का रही हैं परन  

 

वो इतना जरूर समझ जाता है की सामने खड़ा व्यक्ति  उससे थोड़ा भी नहीं दर रहा है कुंडली मल बुध को   डराने के लिए चिल्लाकर पूछता है इस साधु तुझे मुझसे  भाई नहीं लग रहा है क्या मैं आदिमानव हूं बुद्ध कहते   हैं नहीं तुम मानव हो बुद्ध की यह बात उंगली मल के  हृदय पर लगती है पहली बार उसे किसी ने मानव कहा था   परंतु वो इस बात को नज़र अंदाज़ करने का प्रयास करता  है और बुद्ध से पूछता है इस साधु तूने ये क्यों कहा   की तू कब का रुक चुका है जबकि तू तू चल रहा था और  तूने यह क्यों कहा की मैं नहीं रुका बुद्ध कहते हैं  

 

मैं बहुत पहले ही रुक चुका हूं यानी मैंने ऐसे सारे  बुरे कृत्य करना पहले ही छोड़ दिया है जिससे किसी भी   व्यक्ति को कष्ट पहुंच सकते हैं सब जीना चाहते हैं  बस तुम उन्हें करुणा से देखने का प्रयास करो बुद्ध   के यह शब्द दोबारा से उंगली मल के हृदय पर चोट करते  हैं परंतु वह दोबारा से बुद्ध की बातों को नजरअंदाज   करने का प्रयास करता है और कई बार वह और क्रोध में  भरकर बुद्ध की गार्डन पर अपनी कटारी रख देता है   जिससे वो लोगों की हत्या किया करता था और बुद्ध से  चिल्लाकर कहता है नहीं मानव में ना तो प्रेम है और ना ही करुणा है सिर्फ चल और कपट है

 इसलिए मैं सबकी  हत्या करूंगा और किसी को जीवित नहीं छोडूंगा बुद्ध   कहते हैं तुम्हें लोगों ने बहुत दुख दिया है उंगली  मल कुर्ता मनुष्य अज्ञान के कारण ही करता है ईर्ष्या   द्वेष मोह माया ये सभी अज्ञान की ही संताने हैं  परंतु वो व्यक्ति ही हैं जिसमें दया करुणा सद्भाव   और समझ का उदय भी होता है कुंडली मल यदि इस जीवन  में क्रूर और निष्ठुर लोग हैं तो दयावान भी हैं बस   तुम्हें अपनी आंखों से इस अंधेपन की इस पट्टी को  हटाना होगा जो तुम ही केवल बुराई ही दिखा रही है उसे समझ नहीं आता की पहली बार उसे अपना आप इतना  कमजोर क्यों महसूस हो रहा है वह कोशिश तो करता है 

क्रोध करने की परंतु कर नहीं पता वो बड़ी हिम्मत  जताकर क्रोधित होने का नाटक करके बुद्ध से कहता है   तुम और व्यक्तियों जैसे नहीं हो बुद्ध कहते हैं मैं  हर व्यक्ति जैसा ही हूं बस जागृत हूं और यह सिद्ध   कर रहा हूं की हर व्यक्ति में जैन की क्षमता है मेरा  मार्ग कुर्ता को दया में परिवर्तित करता है उंगली मल   तुम अनजाने में घृणा के पथ पर हो बस इस क्षण रुक जाओ  तुम्हारे भीतर भी एक क्षमता है की तुम दया और करुणा   के पद पर चल सको इतना सुनते ही उंगली मल के हाथ से  कटारी जमीन पर गिर जाती है और उसकी आंखों से आंसू बहाने लगते हैं भला कोई कब तक बुध को अनदेखा करेगा  उंगली मल रोते हुए बुध से पूछता है क्या आप वही हैं   जिन्हें लोग बुध कहते हैं जो लोगों को मुक्ति के  मार्ग पर चलना सीखते हैं फिर बुद्ध कहते हैं की हान   मैं वही हूं और तुम्हें भी मुक्ति के मार्ग पर ले  जाना चाहता हूं फिर उंगली मल कहता है परंतु मैं अब   बहुत दूर निकल गया हूं मैंने बहुत हत्याएं कारी हैं  और बहुत पाप करें मैं अब शाहकार भी वापस नहीं लौट   सकता और मेरा वापस लौटना अब असंभव है बुद्ध कहते हैं  असंभव कुछ भी नहीं जब जागो तभी सवेरा कुंडली मल कहता है

 मैं अब उन्हें जीवन की ओर नहीं मोड सकता बहुत  देर हो चुकी है बुध कहते हैं तुमने इतनी चेतना है   की तुम जानते हो की जो तुमने अब तक किया वह बुरा था  इसका अर्थ यह है की तुम जानते हो की क्या अच्छा है   और क्या बुरा है उन्हें मल जिस दिन से तुमने अच्छा  कार्य करना शुरू कर दिया उसे दिन से तुम्हारा एक नया   जीवन शुरू हो जाएगा फिर उंगली मल कहता है मैं कितने  भी अच्छे कार्य क्यों एन कर लूं परंतु लोग मुझे उसी   दृष्टि से देखेंगे और मुझे चैन से जीने नहीं देंगे  बुद्ध कहते हैं उंगली मल यदि तुमने हिंसा का मार्ग छोड़ा तो मैं तुम्हें मार दिखाऊंगा और तुम्हारा  संरक्षण करूंगा और तुम्हें लोगों की घृणा से बचाऊंगा   

बस पहला कदम तुम्हें ही उठाना होगा उंगली मल पूछता  है क्या यह हो सकता है बुध कहते हैं अवश्य हो सकता   है तुमने असामान्य बुद्धि है उंगली मल तुम परम सत्य  के पथ पर बहुत आगे जाओगे उंगली मल रोते हुए बुद्ध   के चरणों में गिर पड़ता है और कहता है मैं आपको वचन  देता हूं की मैं सारी बुरे कृत्य करना छोड़ दूंगा और   आपके पीछे करुणा के पथ पर चलना sikhunga कृपा कर आप  मुझे अपना शिष्य बना लीजिए बुद्ध कहते हैं

 मैं किसी को अपना शिष्य नहीं बनाता बल्कि व्यक्ति स्वयं मेरे  संग से जुड़ता है उंगली मल उसी समय बुद्ध का भिक्षु   बन जाता है बुद्ध का भिक्षु बनने के बाद उसका नाम  अहिंसक पद जाता है फिर बुद्ध ने जैसा उसका नाम रखा   था और वो ठीक वैसा ही वह बन चुका था जब अहिंसक प्रथम  बार अन्य भिक्षुओं के साथ एक गांव में bhikshatan के   लिए जाता है तो गांव के कुछ लोग उससे बदला लेने  के लिए उसे लाठी डंडों से पीटने लगते हैं जब यह   बात बुद्ध को पता चलती है तो वे तुरंत उसे बचाने के  लिए उसके पास पहुंचने हैं और अपने शरीर को उन लाठी डंडों के बीच में ले आते हैं

 जो अहिंसक को पढ़ रहे  द बुद्ध को देखकर वे गांव वाले डंडे और पत्थर मारना   बंद कर देते हैं सभी लोग बुद्ध से कहते हैं बुद्ध  क्यों आप इस हत्यारे उंगली मल की रक्षा कर रहे हैं   एन जाने कितने लोगों की jaaneli हुई हैं इसने बुद्ध  कहते हैं अब यह उंगली मल नहीं है बल्कि इसका नाम अब   अहिंसक है अब यहां आपकी ही तरह एक मानव है वे गांव  वाले कहते हैं ऐसा आदमी कभी नहीं बदल सकता बुध कहते   हैं यह बदल चुका है बस आप सब लोग इसे अपनी पुरानी  दृष्टि से देख रहे हैं यदि यह उंगली मल होता तो क्या  

आप में से किसी ने भी इतना साहस या बाल होता की कोई  इसे एक उंगली भी लगा सके यह आपका हर बार खाता रहा   है और क्या इसने आप पर कभी पलट कर वॉर किया नहीं  क्या यह परिवर्तन आपको नहीं दिखा आज इसने अपना लहू   वहां से अपने सारे बुरे कृत्य धो डेल हैं आप लोगों  के द्वारा इतनी मार खाने के बाद भी इसकी आंखों में   आपके लिए क्रोध नहीं है क्या यह बदलाव आपको नहीं  दिख रहा है यह तो बदल गया परंतु आप कब बदलोगे इतने   में ही उन गांव वालों में से एक स्त्री कहती हैं यह  परिवर्तन मैंने स्वयं देखा है वो स्त्री गांव वालों   से कहती है आप में से कौन ऐसा है जो दूसरों के दुख  में दुखी हो दूसरों की पीड़ा से हैं ना हो तो उसे हर प्रकार की सहायता प्रदान करें

 और ऐसा इस भिक्षु ने  किया है दो दिन पहले एक व्यापारी अपनी पत्नी को लेकर   जा रहा था और उसकी पत्नी प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी  तब मैं पास से ही गुजर रही थी इसलिए मैं भी दौड़ी   दौड़ी गई उसे स्त्री की पीड़ा बढ़ती ही जा रही थी  घाना जंगल होने के कारण उसे कहीं ले जया कभी नहीं   जा सकता था तभी यह भिक्षु वहां पहुंचा और इसने मुझसे  पूछा की क्या हुआ बहन मैंने इसे बताया की यह स्त्री   प्रसव पीड़ा में है और इस गाने वैन में हम कुछ कर  भी नहीं का रहे हैं कब तक यह कष्ट bhoggi कहीं इसके और इसके बच्चे के प्राण ना चले जाएं

 फिर इस भिक्षु  ने मुझसे कहा की ऐसा नहीं होगा मैं अभी अपने गुरु   के पास जाऊंगा वे अवश्य ही कोई मार्ग दिखाएंगे इतना  कहकर यह भिक्षु दौड़कर वहां से चला गया बुद्ध कहते   हैं की फिर व्यथित हो अहिंसक मेरे समक्ष आया और मेरे  पैरों में गिरकर मुझसे कहने लगा बुद्ध एक स्त्री गहन   प्रसव पीड़ा में है और उसकी पीड़ा बढ़ती ही जा रही  है कहीं मैन और बच्चे को कुछ होने जाए यह सब सुनकर   बुध ने कहा की दौड़कर जाऊं और उससे कहो बहन जिस दिन  से मेरा जन्म हुआ है मैंने जान बूझकर किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचा है 

मेरे सत्कर्म तुम्हारा  सुरक्षा कवच बने और आपकी और आपकी शीश की रक्षा करें   अहिंसक ने मुझसे कहा परंतु यह तो सत्य होगा बुध सत्य  तो यह है की मैंने आज तक बहुत से प्राणियों को कष्ट   पहुंचा है यदि मैंने ऐसा कहा तो वे माता और शिशु उसी  क्षण प्राण त्याग देंगे फिर बुद्ध ने कहा तो तुरंत   जाओ और उसे स्त्री से कहो बहन जिस दिन से मेरा एक  नया जन्म हुआ है मैंने सभी बुरे कृतियां को त्याग   है और उसे दिन से मैंने किसी भी प्राणी को कष्ट  नहीं पहुंचा है और मेरे सत्कर्म आपका सुरक्षा कवच   बने और आपकी और आपके शिशु की रक्षा करें फिर अहिंसक  ने बुद्ध से पूछा की क्या मेरी सत्कर्म उन्हें बचा लेंगे बुद्ध ने कहा की अवश्य यह तुम्हारी अपनी कमाई  है या तो तुम इसे अपने लिए बचा कर रखो या फिर किसी   पराई पर खर्च कर दो अपने कमाए सत्कर्म को किसी पराए  पर न्योछावर करने से पहले अहिंसक ने एक शर्त नहीं   सोचा और वो उसी समय उसे स्त्री और उसके शिशु की जान  बचाने के लिए वहां चला आया वह स्त्री कहती है की हान   यह भिक्षु दौड़कर वहां आया और अभी भी वो स्त्री गहन  पीड़ा से जूझ रही थी इसने अपने दोनों हाथ जोड़े और   आंखें बंद करके कहने लगा बहन जिस क्षण से मैं भिक्षु  बना हूं उसे क्षण के बाद मैं कोई भी ऐसा कृत्य नहीं किया

 जिससे की किसी भी प्राणी को कष्ट पहुंचे मेरे  सत्कर्म आपके लिए सुरक्षा कवच बने आपकी और आपकी शिशु की रक्षा करें और इतना कहते ही उसे स्त्री ने अपने  बच्चे को जन्म दे दिया फिर बुद्ध कहते हैं की दूसरों   के दुख से दुखी होने वाला यह व्यक्ति अहिंसक कैसे  किसी को दुख दे सकता है यदि ये भिक्षु मैन का सच्चा   ना होता तो वह स्त्री कप के अपने प्राण त्याग चुकी  होती फिर अहिंसक ने बुद्ध से कहा है की इन्हें मत   रॉकी बुध इन्हें मरने दीजिए और तब तक मरने दीजिए  जब तक की इनके मैन का क्रोध शांत ना हो जाए फिर   बुद्ध अहिंसक से कहते हैं कर्म और गुना के भंडार  हो तुम आज तुमने अपने नाम अहिंसक को सिद्ध कर दिया बुद्ध और उसे स्त्री गांव वाले कहते हैं बुद्ध  अहिंसक बदल चुका है और हमसे ही देखने में भूल हो   गई थी इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है की लोग  सोचते हैं की उन्होंने बहुत सारे गलत कम किए हुए हैं   अब इन गलत कामों को सुधारने के लिए कोई भी विकल्प  नहीं है इस पर गौतम बुद्ध कहते हैं की चाहे आपने अब   तक कितने भी बुरे कम क्यों एन किए हुए होंगे लेकिन  अगर आप एक विचार को अपने मैन में लेट हैं की अब मुझे   कुछ सही करना है तो वही विचार आपके रूपांतरण का कारण  बन सकता है पर सबसे जरूरी बात यह है की क्या आप पहला कदम उठाने के लिए तैयार है यह कहानी आपको कैसी  लगी नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं


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