मंगलवार, 30 मई 2023

प्राण कैसे निकलते है? | Garuda Purana

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प्राण कैसे निकलते है? | Garuda Purana  


प्राण कैसे निकलते है? | Garuda Purana

जय श्री विष्णु हरि दोस्तों वासांसी जिनानी यथाबी  नवाने ग्रेनती नरोपरानी तथा शरीरानी बिहाइंड जीर्ण   99 सन्यासी नवानी दही अर्थात जैसे मनुष्य अपने  पुराने जिन वेस्टन को त्याग कर दूसरे नए वेस्टन   को धरण करता है ठीक वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर  को त्याग कर दूसरे नए शरीर में प्रवेश करती है   आप सभी दर्शकों का हमारे युटुब चैनल डी वैदिक  पुराण पर हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है आज हम   महर्षि वेद व्यास जी द्वारा रचित श्री गरुड़  महापुराण के दिव्या ज्ञान के मध्य से यह जन का   प्रयास करेंगे की मनुष्य की मृत्यु कैसे होती  है और मनुष्य के शरीर से आत्मा कैसे निकलते है

 

गरुड़ महापुराण का दिव्या व्याख्यान करते हुए कहते  हैं की है मुनीश्रेष्ठ हो जब गरुड़ देव ने भगवान   श्री हरि विष्णु जी से विनय पूर्वक आग्रह  किया और पूछा की है प्रभु जीवात्मा किसी भी   प्राणी के शरीर को कैसे छोड़ती है तथा आत्मा के  शरीर से अलग होते समय शरीर की कैसी दशा होती है   मृत्यु क्या स्वरूप कैसा है और मृत्यु कैसे होती है  इसका विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए और मेरी जिज्ञासा   को शांत करने की कृपा कीजिए इस पर भगवान श्री हरि  विष्णु गरुड़ से कहते हैं की है विनीता पुत्र अब   मैं तुम्हारे संशो को दूर करते हुए तुम्हें आत्मा  के शरीर से मुक्त होने अर्थात व्यक्ति की मृत्यु का वर्णन तुम्हें सुनता हूं है


गरुड़ देव प्रकृति  परिवर्तनशील है और निरंतर बदलती रहती हैं पर झाड़  में पेड़ के हरे पेट सूखकर और पीले होकर नीचे गिर  जाते हैं और बसंत में पुनः से हरे पेट ग जाते हैं   सीट रितु के बाद ग्रीष्म रितु ग्रीष्म रितु के  बाद वर्षा रितु वर्षा रितु के बाद शरद रितु और फिर शरद रितु के बाद सीट रितु दोबारा से आई है यह सब  निरंतर चला राहत है इसी प्रकार मनुष्य भी पहले शिशु  फिर बालक और फिर युवा और अंत में वृद्ध हो जाता है  जो प्राणी इस संसार में उत्पन्न होगा उसका इस संसार  को छोड़कर जाना भी निश्चित है आप समय अनुसार  यह कम चला राहत है 


इसी कम में जब व्यक्ति अपनी औसत आयु को पूर्ण कर लेट है और स्वाभाविक मृत्यु के  द्वारा उसका इस संसार को छोड़ने का समय निकट आता है  तो आत्मा के शरीर से मुक्त होने से पहले उसे  व्यक्ति के शरीर में कई प्रकार की व्याख्या अर्थात   रोग उत्पन्न हो जाते हैं जैसे की मस्तिष्क का रोग  आंखों का रोग कानों का रोग नाक का रोग मुंह का रोग   गले का रोग हृदय का रोग उधर रोग पैरों का रोग  इत्यादि कई प्रकार के रोग हो जाते हैं [संगीत]   उसका कंठ अवरुद्ध होने लगता है उसकी आंखों में  आंसू आने लगता हैं उसका शरीर पंगु होने लगता है   उसकी हृदय गति रुक जाति है हृदय सुन हो जाता  है


उसे अत्यंत घुटन महसूस होती है उसने अपने जीवन में जो भी शुभ अशुभ कार्य किया और जो जो  उसके जीवन में घटनाएं घटित हुई होगी उन सभी का   स्मरण उसे होता राहत है यह सब एक चलचित्र  की भांति उसकी आंखों में दिखता राहत है   इस भावना के दौरान उसके मां में जीवन भर अर्जित  संपत्ति और प्रियजनों के प्रति अत्यधिक शक्ति   होती है जिसके करण उसके प्राण निकलते समय उसे  अत्यधिक कष्ट और अत्यंत दुख होता है इस समय   वह अपने प्रियजनों को पुकारता है और उनसे बात  करना चाहता है उनसे कुछ कहना चाहता है लेकिन   समर्थ विहीन होकर कुछ का नहीं पता और उसकी बटन और  संकेत को पास बैठा कोई भी व्यक्ति नहीं समझ पता है  

       

जब उसकी सांस रुकने को होती है तब वह सांसों को  वापस लाने के लिए संघर्ष करता है उसे बहुत बेचैनी   पीड़ा और छटपटाहट होती है क्योंकि नदियों से प्राण  खींचकर एक जगह एकत्रित होने लगता हैं उसकी पांचो   इंद्रिय अर्थात स्पर्श स्वाद गंद दृष्टि और श्रवण  की इंद्रियां एक कशिथिल होकर लुप्त होती जाति है   श्रवण शक्ति सबसे अंत में लुप्त होती है जब  प्राण निकालने का समय बिल्कुल पास ए जाता है   तो एक प्रकार की मूर्छा ए जाति है एक बिच्छू  के काटने से जितना दर्द होता है उसके कई गुना   बिच्छुओं के काटने का दर्द उसे महसूस होता है


 तब  उसके प्राण निकालना के लिए यह के दो दूध आते हैं और उसके अचेतन शरीर से उसके प्राणों को बाहर खींच  लेते हैं यह प्राण ही आत्मा है व्यक्ति के शरीर में   नौजवान अर्थात दो आंखें दो कान दो नथुने और दो  माल मूत्र त्यागना के द्वारा होते हैं जबकि एक   ब्रह्म रंग होता है जो सर के मध्य भाग में होता  है यह दसवें द्वारा के रूप में जाना जाता है जब   व्यक्ति की मृत्यु होती है तो यह के दूध आत्मा  को इन्हीं द्वारों से शरीर से बाहर खींचते हैं   यह सब मनुष्य के कर्मों पर निर्भर करता है की उसकी  आत्मा किस द्वारा से शरीर छोड़कर बाहर निकले जो लोग   श्रेष्ठ योगी संत महात्मा ऋषि मनी सरवाही तहसील और  भगवान के भक्ति मार्ग पर चलने वाले होते हैं उनकी  

 

आत्मा अपने आप ग्रहण से देख का त्याग करके बाहर  निकाल आई है जो लोग धर्म पर आएं कथा का प्रचार   प्रसार करने वाले और मधुर वाणी वाले होते हैं  उनकी आत्मा मुख के द्वारा से बाहर निकलते हैं   जो लोग सदाचारी और भागवत कथा सुनने वाले होते हैं  उनकी आत्मा कान के द्वारा से निकलते हैं जो लोग   सत्यकर्मी और दूर दृष्टि वाले होते हैं उनकी आत्मा  आंख के द्वारा से निकलते हैं जो लोग अच्छी विचारधारा   और सहयोगी स्वभाव वाले होते हैं उनकी आत्मा नाक के  द्वारा से निकलते हैं और जो लोग अत्यंत पापी करूर   गांधी विचारधारा वाले अत्यधिक झूठ बोलने वाले और  दूसरों का अनिष्ट करने वाले होते हैं 



उनकी आत्मा को यह के दूध माल मूत्र त्यागने वाले द्वारा से बाहर  खींचते हैं जब आत्मा मुख के द्वारा से निकलते है तुम   उसे झांक या फैन निकलता है जब आत्मा आंख के द्वारा  से निकलते हैं तो आंखें उभर कर बाहर निकाल आई हैं जब   आत्मा कान के द्वारा से निकलते हैं तो कान से मवाद  या मेल निकलता है जब आत्मा नाक के द्वारा से निकलते   हैं तो नाक से गंदा पानी निकलता है और जब आत्मा माल  मूत्र त्यागने वाले द्वारा से निकलते हैं तो इनवारों   से माल वृत्र बाहर निकाल आता है इस प्रकार यह के  द्वारा आत्मा को शरीर से बाहर निकाल कर अलग किया  

 

जाता है तो यह थी गरुड़ पुराण में वर्णित आत्मा के  शरीर से मुक्त होने के बड़े में एक छोटी सी जानकारी   हम आशा करते हैं की आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी तो इसके लिए हम दिल की अनंत गहराइयों से आपका  कोटि-कोटि धन्यवाद करते हैं जय हिंद जय भारत  


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