शनिवार, 2 दिसंबर 2023

फोकस 100 गुना बढ़ जाएगा | Buddha story on FOCUS

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 फोकस 100 गुना बढ़ जाएगा | Buddha story on FOCUS| Gautam Buddha story

फोकस 100 गुना बढ़ जाएगा | Buddha story on FOCUS


बहुत समय पहले की बात है किसी गांव में एक सम्राट था उस सम्राट के पास सब कुछ था बेशुमार दौलत थी अच्छी प्रजा थी जो उसका ख्याल रखती थी उसके आदेशों का पालन किया करती थी और वह भी अपनी प्रजा का खूब ध्यान रखा करता था उन्हें कभी किसी चीज की कोई कमी महसूस नहीं होने देता था कहने को तो उस सम्राट के पास सब कुछ था किसी चीज की कोई कमी नहीं थी 

लेकिन उसका मन कभी किसी एक काम पर नहीं टिक पाता था वह जब भी किसी भी चीज को करने का प्रयास करता तो उसका ध्यान कहीं भटक जाता इस चीज को लेकर वह बहुत चिंतित रहता था कई बार वह अपने बगल के राज्य के राजाओं से भी मिला था और सभी ने उसे अलग-अलग राय दी थी सभी ने उसे अलग-अलग तरीके बताए थे जो भी तरीके उस सम्राट ने सुने थे उन तरीकों को अपने जीवन में उतारा 

लेकिन उन उपायों से उसे कोई लाभ ना मिला जिसके कारण वह हमेशा चिंतित रहता परेशान रहता कई बार तो रातों को उसे नींद भी नहीं आती और वह केवल करवटें बदलता रहता एक दिन सम्राट के कानों तक एक बात पहुंची कि उसके राज्य में एक ऐसा असाधारण व्यक्ति है जिसके शब्द अनमोल है जिसके एक एक शब्द में जीवन का रहस्य छुपा है जीवन का सत्य छुपा है और उस व्यक्ति से मिलने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं 

क्योंकि हर व्यक्ति की समस्या का समाधान वह बहुत ही सरलता और आसानी से करता है यह बात सुनकर सम्राट बहुत प्रसन्न हुआ उसे लगा कि अब उसके सवालों का जवाब उसे मिल जाएगा इतनी तारीफ सुनकर सम्राट ने यह तय किया कि वह तुरंत ही जाकर उस व्यक्ति से मिलेंगे और उसे यह भी पता चल जाएगा कि जो लोग उनकी इतनी तारीफ कर रहे हैं क्या वह सच है या नहीं अगले दिन सुबह-सुबह वह सम्राट उस व्यक्ति से मिलने के लिए निकल गया रास्ता कुछ ज्यादा ही लंबा था 

जिस कारण सम्राट ने बीच रास्ते में आराम किया वहां पर उपस्थित हर कोई उस व्यक्ति के बारे में जानता था जब सम्राट ने उनसे उस व्यक्ति के बारे में पूछा तो वे लोग उस असाधारण व्यक्ति की खूब तारीफ कर रहे थे तभी सम्राट ने सोचा कि लगता है यह व्यक्ति बहुत बुद्धिमान है बहुत ज्ञानी होगा और प्रभावशाली व्यक्ति होगा अन्यथा हर कोई उसकी इतनी तारीफ नहीं करता जरूर ही उस व्यक्ति में ऐसी कोई बात अवश्य है जिसके कारण हर कोई उन्हें जानता है और उनकी तारीफ कर रहा है 

उस व्यक्ति की तारीफ सुनकर सम्राट के मन में उस व्यक्ति से मिलने की उत्सुकता और अधिक हो गई अब वह सम्राट जल्द से जल्द उस व्यक्ति से मिलना चाहता था जिसके कारण वह आगे का सफर तय करना शुरू कर देता है जैसे-तैसे वह सम्राट उस व्यक्ति के आश्रम पहुंचा पर आश्रम में उसे कोई नजर नहीं आया आश्रम के पीछे एक छोटा सा बगीचा था जब सम्राट वहां पहुंचा तो उसने देखा कि एक माली बगीचे में काम कर रहा था उसका पूरा शरीर मिट्टी से लथपथ पैरों में कोई चप्पल नहीं थी 

इसको देखकर सम्राट ने माली से कहा सुनिए महोदय इस आश्रम के मालिक कहां है मैं उनसे मिलने आया इस पर वह माली जवाब देते हुए कहता है श्रीमान आप अंदर बैठिए मैं उन्हें बुलाता हूं वह जल्द ही आपसे मिलेंगे माली की यह बात सुनकर सम्राट अंदर कुटिया में जाकर बैठ गया और उस असाधारण व्यक्ति के आने का इंतजार करने लगा कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद जब असाधारण व्यक्ति उस सम्राट के सामने पहुंचा उसने देखा कि यह तो वही व्यक्ति है जो बगीचे में काम कर रहा था सम्राट ने उन्हें नमस्कार किया और बहुत हैरानी से कहा अरे आप तो वही माली है जो बाहर बगीचे में काम कर रहे थे 

लेकिन अबकी बार तो माली एक बौद्ध भिक्षु के रूप में आया था तभी बौद्ध भिक्षु सम्राट से कहते हैं सम्राट मेरा मजाक माफ कीजिए मैं बगीचे में छोटा सा काम कर रहा था मैं ही यहां का माली हूं और मैं ही वह असाधारण व्यक्ति हूं जिससे आप यहां इतनी दूर मिलने आए कृपया करके अपने आने का कारण बताए इस पर सम्राट उन बौद्ध भिक्षु से कहता है हे 

महाराज मैंने सुना है कि आप जैसा व्यक्ति इस पूरे राज्य में नहीं है मैंने आपकी तारीफ सुनी है मैंने आपके बारे में कई सारी अच्छी बातें सुनी है मैंने यह भी सुना है कि आपके पास जो भी अपनी समस्या लेकर आता है उसकी समस का समाधान आप अवश्य करते हैं इसी कारण वश मैं आज आपसे यहां पर मिलने आया हूं और मैं आपसे उपदेश सुनना चाहता हूं 

लेकिन मेरे मन में एक शंका है इस पर बौद्ध भिक्षु सम्राट से कहते हैं कैसी शंका इस पर सम्राट कहता है मैंने बहुत से विद्वानों को देखा है बहुत से ज्ञानियों को देखा है वे जब भी चलते हैं तो उनके पास तरह-तरह की ज्ञान की किताबें होती हैं उनके पास ऐसा कोई ना कोई संकेत जरूर नजर आता है जिससे यह पता चल सकता है कि वे लोग ज्ञानी है 

लेकिन आपके पास तो ना कोई ज्ञान की किताबें हैं और ना ही कोई ऐसी कला के संकेत आप में नजर आ रहे हैं लेकिन उसके बावजूद आप बहुत शांत नजर आ रहे हैं क्या आप मुझे इसका रहस्य बता सकते हैं इस पर बौद्ध भिक्षु मुस्कुराने लगे और सम्राट से कहते हैं मेरा ज्ञान तो इस संस्कार में प्रकृति के रूप में हर जगह है मैं अपना ज्ञान जीवन की सरल और साधारण वस्तुओं से ही लेता हूं पर महाराज आप यहां किस समस्या को लेकर परेशान है 

कृपया आप मुझे आपके यहां आने का कारण समझाएं इस पर सम्राट कहते हे गुरुवर मेरे यहां आने का कारण यह है कि मैं किसी भी काम को लेकर लंबे समय तक उसी कार्य पर अपना ध्यान नहीं लगा पाता मैं कुछ ही देर में उस कार्य से भटक जाता हूं कृपया कर मुझे अपने इस समस्या का समाधान बताएं मैं इस बात से काफी चिंतित हूं बौद्ध भिक्षु ने सम्राट की चिंता को समझकर कहा महाराज आपकी समस्या मुझे समझ आ गई है आप जिस कार्य पर ध्यान नहीं लगा पा रहे उसके लिए मैं आपको एक उपाय बता सकता हूं 

लेकिन आज आपको देर हो चुकी है आप मुझे कल सुबह मिलिए कल सुबह का समय ठीक रहेगा कल सुबह जब आप मुझसे मिलेंगे तो मैं आपके सभी सवालों का जवाब आपको दे दूंगा यह कहकर बौद्ध भिक्षु वापस अपने बगीचे में लौट गए और वह सम्राट भी वापस अपने महल लौट गया लेकिन सम्राट को रात भर नींद नहीं आए वह बस यही सोच में लगा था कि आखिर बौद्ध भिक्षु मुझे क्या बताने वाले हैं वह तो मुझे एक साधारण से माली नजर आ रहे हैं 

लेकिन जिस तरह से उनका मन शांत था जिस तरह से वह शांत नजर आ रहे थे यह बहुत बत आश्चर्य करने वाली बात है रात भर सम्राट इन्हीं ख्यालों में खोया रहा अगले दिन सुबह सूरज निकलने से ठीक पहले सम्राट उस आश्रम पर वापस पहुंचा वहां पर बौद्ध भिक्षु पहले से ही उपस्थित थे जैसे ही सम्राट वहां पहुंचा उन बौद्ध भिक्षु ने एक पानी का छोटा सा जग उस सम्राट के हाथ में थमा हुए कहते हैं 

इसे लीजिए और पौधों पर धीरे-धीरे पानी डालिए और ऐसा करते करते यह आपके सामने पूरे 15 पौधे हैं इन सभी पर आपको इसी प्रकार पानी डालते चले जाना है लेकिन जब आप इस क्रिया को कर रहे होंगे तो उस वक्त मेरी एक बात का अवश्य ध्यान रखिएगा कि आपको इस दौरान कुछ और नहीं करना है ना कुछ सोचना है और ना ही कहीं आपका ध्यान भटकना चाहिए 

आप जब इन पौधों को पानी दे रहे होंगे तो आपका पूरा ध्यान केवल इन पौधों पर ही होना चाहिए यदि इस बीच आपके मन में कोई विचार आए तो वहीं पर रुक जाइएगा और फिर दोबारा से पहले पौधे से पानी डालना शुरू कीजिएगा और जब आप मेरी बात मानकर ठीक इसी प्रकार इन सभी 15 पौधों को पानी दे देंगे तब आप मेरे पास आइएगा और मैं आपके सभी सवालों का जवाब आपको दे दूंगा उस सम्राट ने आज तक ऐसा कोई काम नहीं किया था और सम्राट को यह काम बहुत छोटा सा लग रहा था 

सम्राट पहली बार ऐसा कोई काम करने जा रहा था उस पानी के जग से पहले पौधे पर बहुत ही ध्यान पूर्वक पानी दिया और फिर दूसरे पौधे की ओर आगे गया दूसरे पौधे पर भी उसने ध्यानपूर्वक पानी दिया फिर उसने तीसरे पौधे पर पानी देना शुरू किया ही था कि उसके मन में तरह-तरह के विचार उत्पन्न होने लगे उसे अपने महल का बगीचा याद आने लगा जहां पर तरह-तरह के फूल थे तरह-तरह के पौधे लगे हुए थे तभी अचानक उस सम्राट को उन बौद्ध भिक्षु की बात याद आ गई यदि मन में कोई भी विचार उत्पन्न हो तो उसे फिर से पहले पौधे से पानी देना शुरू करना होगा तुरंत ही पहले पौधे के पास वापस पहुंचा और उसने फिर से पहले पौधे को पानी दिया दूसरे पौधे को उसने फिर से ध्यानपूर्वक पानी दिया जैसे ही वह तीसरे पौधे पर पर पहुंचा उसके मन में फिर से कई तरह के विचार उत्पन्न होने अबकी बार यह सोच रहा था पता नहीं मेरे बिना मेरे साम्राज्य में क्या हो रहा होगा और अबकी बार सम्राट को बहुत क्रोध आने लगा उसने सोचा कि आखिर में यह छोटा सा कार्य क्यों नहीं कर पा रहा हूं

वह तुरंत ही फिर से पहले पौधे के पास पहुंचा उसने अबकी बार बहुत ध्यानपूर्वक पहले पौधे को पानी दिया दूसरे पौधे को भी ध्यानपूर्वक पानी दिया ऐसे करते-करते अबकी बार सम्राट करीबन पांच पौधों में बहुत ही ध्यान पानी दे चुका था लेकिन अबकी बार जैसे ही उसने छठे पौधे पर पानी देना शुरू किया उस पानी को देखकर सम्राट के मन में नदी के विचार उत्पन्न होने लगे और सम्राट अब बहुत परेशान हो चुका था जितनी बार वह पौधों को पानी देने का प्रयास करता है हर बार वह असफल हो जाता उसका मन उतना ही ज्यादा व्याकुल होता जाता और वह खुद पर क्रोधित हो जाता है सम्राट यह बात बहुत अच्छी तरह से जानता था कि वह भिक्षु उसकी परीक्षा ले रहे हैं वह बहुत बुद्धिमान था 

इस कारण उस उसने उन बौद्ध भिक्षु के सभी नियमों का पालन करना जरूरी समझा सम्राट जितनी बार भी कोशिश करता है हर बार वह असफल हो जाता उसका मन उतना ही ज्यादा व्याकुल होता जाता है हमेशा खुद को किसी ना किसी विचार में उलझा हुआ पाता ऐसे ही करते करते सुबह से शाम का वक्त हो चुका था लेकिन अब तक वह सम्राट पूरे 15 पौधों में पानी नहीं दे पाया था जब बौद्ध भिक्षु लौटकर शाम को वापस आश्रम लौटे तो उन्होंने देखा कि वह सम्राट थक हार कर बैठा हुआ है और तरह-तरह की बातो में उलझा हुआ है 

तभी बौद्ध भिक्षु सम्राट के पास पहुंचे और कहने लगे हे सम्राट मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत खुश हूं तुमने अपने कार्य को पूरे मन और लगन के साथ करने का पूरा प्रयास किया इसलिए जो बात मैं तुम्हें बताने जा रहा हूं उसे बहुत ही ध्यानपूर्वक सुनना और समझने का प्रयास करना जब हमारा मन विचारों से खाली हो जाता है तब उसमें मन का असली स्वरूप नजर आता है तब साधारण से साधारण सा काम भी हमें ज्ञान और शांति देता है इस पर सम सम्राट उन बौद्ध भिक्षु से कहता है हे महाराज पर यह कैसे संभव है मैं तो जब भी कोई कार्य करता हूं 

तो मन में कई तरह के विचार उत्पन्न होते हैं और मैं उन विचारों में फंस कर रह जाता हूं और वहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता मुझे नजर नहीं आता तभी बौद्ध भिक्षु मुस्कुराने लगे और सम्राट से कहते हैं हे सम्राट तुम पौधों में पानी नहीं डाल रहे थे तुम तो जल्दी जल्दी अपने इस कार्य को बस खत्म करना चाहते थे तुम्हारे मन में तो यह विचार उत्पन्न हो रहा था कि तुम जल्दी से जल्दी इन 15 पौधों में पानी दे दो और उसके बाद तुम मुझसे मिल सको मुझसे अपने प्रश्नों का उत्तर जान सको किसी कारणवश यह कार्य तुम्हें बोझ सा प्रतीत हो रहा था मानो मैंने तुम्हारे कंधों पर एक बोझ रख दिया हो और यही कारण है कि तुम अपने आप को इस पल में रोक नहीं पाए जब हमारे सामने रखा हुआ कार्य बोझ लगता है 

तो हम उसे बस जैसे तैसे खत्म करना चाहते हैं और उस काम को करते समय हम अपना पूरा ध्यान उस कार्य पर नहीं दे पाते किंतु अगर तुम इस पल के महत्व को समझ पाते इसके महत्व को महत्व दे पाते और केवल पौधों और पानी पर ध्यान देते तो तुम्हें कोई भी विचार परेशान नहीं कर पाते इस पर सम्राट कहता है हे महाराज मुझे आपकी यह बात समझ में आ रही है कि मैं जल्दी जल्दी इस कार्य को खत्म करके आपसे मिलना चाहता था जिस कारण मेरा मन इस कार्य में पूरी तरह से नहीं लग सका 

लेकिन यह एक पल है जो हम जी रहे हैं उस पल में रहना बहुत कठिन है क्या मुझे इसके लिए कोई तपस्या या तप करना होगा इस पर बौद्ध भिक्षु एक बार फिर मुस्कुराने लगे और सम्राट से कहते हैं जिस शांत मन की तलाश तुम कर रहे हो वह शांत मन तो पहले से ही मौजूद है वह तो पहले से ही तुम्हारे भीतर है इसके लिए तुम्हें कहीं भी जाने की कोई आवश्यकता नहीं है और ना ही तुम्हें कहीं शांत जगह जाने की आवश्यकता है इसके लिए कुछ जरूरी है तो वह है अपनी सांसों पर ध्यान देना इसलिए अपनी सांसों पर ध्यान देना सीखो हम किस तरह से सांसे ले रहे हैं और किस तरह से त्याग रहे हैं इस बात को देखने और समझने का प्रयास करें

तब तुम्हें यह समझ में आ जाएगा कि तुम्हारा शांत मन तो तुम्हारी सांसों के साथ ही बना हुआ है उसके बाद तुम चाहो तो कोई भी कार्य करते वक्त भी अपनी सांसों पर ध्यान दे सकते हो जब तुम कहीं चल रहे हो कोई ऐसा कार्य कर रहे हो तो तुम्हें अपनी सांसों पर ध्यान देना चाहिए या कोई भी ऐसी क्रिया जो तुम्हें वर्तमान से बांधे रखें इसका एक और तरीका है दो चार मिनट अपने आसपास की प्रकृति पर गौर करो देखो कि क्या चल रहा है 

तुम्हारे आसपास इससे तुम वर्तमान में आ जाओगे फिर तुम अप कार्य को जल्दी जल्दी बस यूं ही खत्म नहीं करके उसे पूरे मन से करने का प्रयास करो जिससे तुम्हारा मन एकाग्र होगा और जब तुम्हारा मन एकाग्र होगा तो तुम चाहे कोई भी कार्य क्यों ना करो फिर चाहे वह छोटा हो या बड़ा तुम्हारा मन उसमें पूरी तरह से विलीन हो जाएगा और वह कार्य ही तुम्हें शांति और ज्ञान भी प्रदान करेगा ऐसे समय पर हमारे मन में किसी प्रकार के कोई विचार उत्पन्न नहीं हो पाते और जब हम ऐसा करते हैं 

तो कर्ता और कर्म एक हो जाते हैं और हमारे भीतर की जो शांति है वह प्रकट होने लगती है हम उसमें मग्न हो जाते हैं इसे तुम चाहे तो आनंद कह सकते हो या फिर वर्तमान में जीना कह सकते हो और यह अवस्था सरलता से प्राप्त भी कर सकते हो बस तुम्हें केवल अभ्यास करना होगा बौद्ध भिक्षु सम्राट से कहते हैं जो मन मुश्किलों में शांत रहता है मुश्किलों से भागता नहीं है केवल सचेत रहता है वह मन हर परेशानी को पार कर सकता है 

हर दुविधा से बाहर निकल सकता है सम्राट को उन बौद्ध भिक्षु की यह सारी बातें समझ में आ चुकी थी उसने उन बौद्ध भिक्षु को प्रणाम किया और वहां से वापस वह अपने राज महल लौट आया उसने अपनी सांसों पर ध्यान देना शुरू किया और धीरे-धीरे इस निरंतर अभ्यास के कारण वह अपने हर कार्य को ध्यान और मन लगाकर किया करता था जिससे उसे असीम शांति मिलती थी और वह छोटे-छोटे कार्यों से भी ज्ञान प्राप्त कर लेता था इसलिए


दोस्तों कभी किसी कार्य को बोझ मानकर मत कीजिए क्योंकि यदि आप उसे बोझ मानेंगे तो जल्दी जल् जल्दी उसे आप अपने ऊपर से उतारने का प्रयास करेंगे अर्थात उसे जल्दी जल्दी खत्म करने का प्रयास करेंगे लेकिन इस प्रयास के दौरान आप जो भी कार्य करेंगे वह पूरे मन और लगन से नहीं हो पाएगा और ऐसे में आप उस कार्य को जो अंजाम देना चाहते हैं हो सकता है कि आप उसे अंजाम भी ना दे सके और इसी कारण वश आपके मन में तनाव भी पैदा हो जाता है हम चिंतित रहने लगते हैं परेशान रहने लगते हैं क्योंकि जो अंजाम हम उस कार्य को देना चाहते थे

 अंजाम हम उस कार्य को ना दे सक के और हम में से अधिकांश लोग यही गलतियां करते हैं जब उन्हें कोई कार्य सौंपा जाता है तो वह उस कार्य को करने का प्रयास तो करते हैं लेकिन वह चाहते हैं कि वह कार्य कितनी जल्दी खत्म हो जाए और वह उस कार्य को करते वक्त अपने आप को वहां नहीं रख पाते बल्कि उनका मन तो कहीं और ही भटकता रहता है जिससे हमारा मन हम पर हावी होने लगता है हमें तरह-तरह के विचार दिखाता है और हम उन विचारों में डूबते चले जाते हैं हम उन विचारों में फंसते चले जाते हैं और फिर वहां से हमें निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता जिससे हमारे मन में तनाव पैदा होने लगता है हम बहुत परेशान रहने लगते हैं 

हम चाहकर भी किसी कार्य को नहीं कर पाते और जो कार्य हमें वर्तमान की ओर ले जा सकता था उस दरवाजे को हम खुद ही बंद कर देते हैं क्योंकि वह कार्य हमें बोझ लगने लगता है इसलिए जब भी आप कोई कार्य शुरू करना चाहते हैं तो उससे पहले अपना पूरा ध्यान अपनी सांसों पर केंद्रित करें और फिर आप चाहे तो अपने काम के दौरान भी अपनी सांसों पर अपना ध्यान लगाए रख सकते हैं और यही सांस का जो ध्यान है यह आपके काम के ध्यान में परिवर्तित हो जाएगा और इस कार्य में जो भी कठिनाइयां उत्पन्न हो रही हैं 

उसे आप पल भर में सुलझा देंगे फिर चाहे कैसी भी विपरीत परिस्थितियां आपके सामने क्यों ना आ जाए आप उस कार्य को पूरे मन और लगन के साथ पूरा करके ही रहेंगे  


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